Monday 26 September 2016

बाल-केन्द्रित शिक्षा

बाल-केन्द्रित तथा प्रगतिशील शिक्षा

बालक के मनोविज्ञान को समझते हुए शिक्षण की व्यवस्था करना तथा उसकी अधिगम सम्बन्धी कठिनाइयों को दूर करना बाल केन्द्रित शिक्षण कहलाता है. अर्थात बालक की रुचियों, प्रवृत्तियों, तथा क्षमताओं को ध्यान में रखकर शिक्षा प्रदान करना ही बाल केन्द्रित शिक्षा कहलाता है. बाल केन्द्रित शिक्षण में व्यतिगत शिक्षण को महत्त्व दिया जाता है. इसमें बालक का व्यक्तिगत निरिक्षण कर उसकी दैनिक कठिनाइयों को दूर करने का प्रयास क्या जाता है. बाल केन्द्रित शिक्षण में बालक की शारीरिक और मानसिक योग्यताओं के विकास के अधर पर शिक्षण की जाती है तथा बालक के व्यवहार और व्यक्तित्व में असामान्यता के लक्षण होने पर बौद्धिक दुर्बलता, समस्यात्मक बालक, रोगी बालक, अपराधी बालक इत्यादि का निदान किया जाता है.
मनोविज्ञान के आभाव में शिक्षक मार-पीट के द्वारा इन दोषों को दूर करने का प्रयास करता है, परंतु बालक को समझने वाला शिक्षक यह जानता है कि इन दोषों का आधार उनकी शारीरिक, सामाजिक और मनोवैज्ञानिक आवश्यकताओं में ही कहीं न कहीं है. इसी व्यक्तिक भिन्नता की अवधारणा ने शिक्षा और शिक्षण प्रक्रिया में व्यापक परिवर्तन किया है. इसी के कारण बाल-केन्द्रित शिक्षा का प्रचालन शुरू हुआ.


बाल केन्द्रित शिक्षण के सिद्धांत


  • बालकों को क्रियाशील रखकर शिक्षा प्रदान करना. इससे किसी भी कार्य को करने में बालक के हाथ, पैर और मस्तिष्क सब क्रियाशील हो जाते हैं.
  • इसके अंतर्गत बालकों को महापुरुषों, वैज्ञानिकों का उदहारण देकर प्रेरित किया जाना शामिल है.
  • अनुकरणीय व्यवहार, नैतिक कहानियों, व् नाटकों आदि द्वारा बालक का शिक्षण किया जाता है
  • बालक के जीवन से जुड़े हुए ज्ञान का शिक्षण करना
  • बालक की शिक्षा उद्देश्यपरक हो अर्थात बालक को दी जाने वाली शिक्षा बालक के उद्देश्य को पूर्ण करने वाली हो.
  • बालक की योग्यता और रूचि के अनुसार विषय-वस्तु का चयन करना
  • रचनात्मक कार्य जैसे हस्त कला आदि के द्वारा शिक्षण.
  • पाठ्यक्रम को छोटे-छोटे हिस्सों में बांटकर शिक्षण

बाल केन्द्रित शिक्षा के अंतर्गत पाठ्यक्रम का स्वरुप

बाल केन्द्रित शिक्षा के पाठ्यक्रम में बालक को शिक्षा प्रक्रिया का केंद्रबिंदु माना जाता है. बालक की रुचियों, आवश्यकताओं एवं योग्यताओं के आधार पर पाठ्यक्रम तैयार किया जाता है. बाल-केन्द्रित शिक्षा के अंतर्गत पाठ्यक्रम का स्वरुप निम्नलिखित होना चाहिए:

  • पाठ्यक्रम जीवनोपयोगी होना चाहिए
  • पाठ्यक्रम पूर्वज्ञान पर आधारित होना चाहिए
  • पाठ्यक्रम बालकों की रूचि के अनुसार होना चाहिए
  • पाठ्यक्रम लचीला होना चाहिए
  • पाठ्यक्रम वातावरण के अनुसार होना चाहिए
  • पाठ्यक्रम को राष्ट्रीय भावनाओं को विकसित करने वाला होना चाहिए
  • पाठ्यक्रम समाज की आवशयकता के अनुसार होना चाहिए
  • पाठ्यक्रम बालकों के मानसिक स्तर के अनुसार होना चाहिए
  • पाठ्यक्रम में व्यक्तिगत भिन्नता को ध्यान में रखा जाना चाहिए
  • पाठ्यक्रम शैक्षिक उद्देश्य के अनुसार होना चाहिए

बाल केन्द्रित शिक्षा में शिक्षक की भूमिका

 शिक्षक, शिक्षार्थियों का सहयोगी व मार्गदर्शक होता है. बाल केन्द्रित शिक्षा में शिक्षक की भूमिका और बढ़ जाती है. बाल केन्द्रित शिक्षा में शिक्षक को:

  • बालकों का सभी प्रकार से मार्गदर्शन करना चाहिए तथा विभिन्न क्रिया-कलापों को क्रियान्वित करने में सहायता करना चाहिए
  • शिक्षा के यथार्थ उद्देश्यों के प्रति पूर्णतया सजग रहना चाहिए
  • शिक्षक का उद्देश्य केवल पुस्तकीय ज्ञान प्रदान करना मात्र ही नहीं होता वरन बाल-केन्द्रित शिक्षा का महानतम लक्ष्य बालक का सर्वोन्मुखी विकास करना है, अतः इस उद्देश्य की पूर्ती के लिए बालक की अधिक से अधिक सहायता करनी चाहिए
  • बाल केन्द्रित शिक्षा में शिक्षक को स्वतंत्र रह कर निर्णय लेना चाहिए कि बालक को क्या सिखाना है?

 


प्रगतिशील शिक्षा

प्रगतिशील शिक्षा की अवधारणा के अनुसार शिक्षा का एकमात्र उद्देश्य बालक की शक्तियों का विकास है. वैयक्तिक भिन्नता के अनुरूप शिक्षण प्रक्रिया में भी अंतर रखकर इस उद्देश्य को पूरा किया जा सकता है. प्रगतिशील शिक्षा कहती है कि शिक्षा का उद्देश्य ऐसा वातावरण तैयार करना होना चाहिए, जिसमे प्रत्येक बालक को सामाजिक विकास का पर्याप्त अवसर मिले.
प्रगतिशील शिक्षा का उद्देश्य जनतंत्रीय मूल्यों की स्थापना है. यह हमें यह बताता है की बालक में जनतंत्रीय मूल्यों  का विकास किया जाना चाहिए. प्रगतिशील शिक्षा में शिक्षण विधि को अधिक व्यावहारिक बनाने पर जोर दिया जाता है. इसमें बालक के स्वयं करके सीखने पर जोर दिया जाता है.
प्रगतिशील शिक्षा के में रूचि और प्रयास दो तत्वों को विशेष महत्वपूर्ण माना गया है. शिक्षक को बालक की स्वाभाविक रुचियों को समझ कर उसके लिए उपयोगी कार्यों की व्यवस्था करनी चाहिए. बालक को स्वयं कार्यक्रम बनाने का अवसर देना चाहिए जिससे वे अपनी रूचि के अनुसार कार्यक्रम बना सकेंगे. प्रगतिशील शिक्षा के अनुसार बालक को ऐसे कार्य देने चाहिए जिससे उनमें स्फूर्ति, आत्मविश्वास, आत्मनिर्भरता तथा मौलिकता का विकास हो सके.


प्रगतिशील शिक्षा एवं शिक्षक

प्रगतिशील शिक्षा में शिक्षक को भी महत्वपूर्ण स्थान दिया गया है. इसके अनुसार शिक्षक समाज का सेवक है. उसे विद्यालय में ऐसा वातावरण बनाना पड़ता है जिसमे पलकर बालक के सामाजिक व्यक्तित्व का विकास हो सके और जनतंत्र के योग्य नागरिक बन सके. विद्यालय में स्वतंत्रता और समानता के मूल्य को बनाये रखने के लिए शिक्षक को कभी भी बालकों से बड़ा नही समझना चाहिए. आज्ञा और उपदेशों के द्वारा अपने विचारों और प्रवृत्तियों को बालकों पर लादने का प्रयास नही करना चाहिए.

शैक्षिक सरोकारों के इतिहास में 1 अप्रैल 2010 सदैव रेखांकित होता रहेगा। यही वह दिन है जिस दिन संसद द्वारा पारित निःशुल्क और अनिवार्य शिक्षा का अधिकार अधिनियम 2009 देश में लागू कर दिया गया। शिक्षा के अधिकार की पहली मांग का लिखित इतिहास 18 मार्च 1910 है। इस दिन ब्रिटिश विधान परिषद के सामने गोपाल कृष्ण गोखले भारत में निःशुल्क शिक्षा के प्रावधान का प्रस्ताव लाये थे।
एक सदी बीत जाने के बाद आज हम यह कहने की स्थिति में हैं कि यह अधिनियम भारत के बच्चों के सुखद भविष्य के लिए मील का पत्थर साबित होगा।
इस आलेख में लागू अधिनियम की दो धाराओं को केन्द्र में रखकर बाल केन्द्रित संभावनाओं पर विमर्श करने की कोशिश भर की गई है।
धारा 17. (1) किसी बच्चे को शारीरिक रूप से दंडित या मानसिक उत्पीड़न नहीं किया जाएगा।
(2) जो कोई उपखण्ड (1) के प्रावधानों का उल्लघंन करता है वह उस व्यक्ति पर लागू होने वाले सेवा नियमों के तहत अनुशासनात्मक कार्यवाही के लिए उत्तरदायी होगा।
धारा 30 (जी) बच्चे को भय,सदमा और चिन्ता मुक्त बनाना और उसे अपने विचारो को खुल कर कहने में सक्षम बनाना।
अधिनियम में इन दो धाराओं से बच्चों के कौन से अधिकार सुरक्षित हो जाते हैं? बच्चे क्या कुछ प्रगति कर पाएंगे? इससे पहले यह जरूरी होगा कि हम यह विमर्श करें कि आखिर इन धाराओं को शामिल करने की आवश्यकता क्यों पड़ी?
यह कहना गलत न होगा कि मौजूदा शिक्षा व्यवस्था बच्चे में अत्यधिक दबाव डालती है। स्कूल जाने का पहला ही दिन मासूम बच्चे को दूसरी दुनिया में ले जाता है। अमूमन हर बच्चे के ख्यालों में स्कूल की वह अवधारणा होती ही नहीं। जिसे मन में संजोकर वह खुशी-खुशी स्कूल जाता है। इससे इतर तो कई बच्चे ऐसे हैं जो पहले दिन स्कूल जाने से इंकार कर देते हैं। इसका अर्थ सीधा सा है। अधिकतर स्कूलों का कार्य-व्यवहार ऐसा है, जो बच्चों में अपनत्व पैदा नहीं करता। यह तो संकेत भर है। हर साल परीक्षा से पहले और परीक्षा परिणाम के बाद बच्चों पर क्या गुजरती है। यह किसी से छिपा नहीं है। यही नहीं हर रोज न जाने कितने बच्चों की पवित्र भावनाओं का , विचारों का और आदतों का कक्षा-कक्ष में गला घोंटा जाता है। यह वृहद शोध का विषय हो सकता है।
उपरोक्त धाराओं के आलोक में यह महसूस किया जा सकता है कि बहुत से कारणों में से नीचे दिये गए कुछ हैं, जिनकी वजह से अधिनियम में बच्चे को भयमुक्त शिक्षा दिये जाने का स्पष्ट उल्लेख किया गया है।

  • स्कूल में दाखिला देने से पहले प्रबंधन-शिक्षक बच्चे से परीक्षा-साक्षात्कार-असहज बातचीत की जाती रही है। एक तरह से छंटनी-जैसा काम किया जाता रहा है। कुल मिलाकर निष्पक्ष और पारदर्शिता का भाव न्यून रहता रहा है।
  • व्ंचित बच्चे और कमज़ोर वर्ग के बच्चे परिवेशगत और रूढ़िगत कुपरंपराओं के चलते स्वयं ही असहज पाते रहे हैं। हलके से दबाव और कठोर अनुशासनात्मक कार्यवाही के संकेत मात्र से स्वयं ही असहज होते रहे हैं।
  • लैंगिक रूप से और सामाजिक स्तर पर भी विविध वर्ग-जाति के बच्चों को स्कूल की चाहरदीवारी के भीतर असहजता-तनाव का सामना करना पड़ता रहा है।
  • कई बार स्कूल में पिटाई के मामलों से तंग आकर कई बच्चे स्वयं ही स्कूल छोड़ते रहे हैं। वहीं कई अभिभावक अपने बच्चों को स्कूल नहीं भेजते रहे हैं अथवा स्कूल भेजना बंद करते रहे हैं।
  • विकलांग और मानसिक तौर पर आसामान्य बच्चों के साथ कक्षा-कक्ष में जाने-अनजाने में ऐसा व्यवहार किया जाता रहा है, जिसके कारण थक-हार कर ऐसे बच्चे शाला त्यागते रहे हैं।
  • परिस्थितियों के चलते कई बच्चे एक सत्र में कई बार अनुपस्थित रहते आए हैं। कठोर नियम के चलते उनका नाम काट दिया जाता रहा है। अनवरत् उपस्थिति की विवशता की मानसिक स्थिति का सामना करते-करते कई बच्चों को स्कूल से हटा दिया जाता रहा है। इस तरह के स्थाई विच्छेदन के लिए प्रचलित संज्ञाएं भी बेहद निराशाजनक रही हैं। ‘तेरा नाम काट दिया गया है’, ‘तूझे स्कूल से निकाल दिया है’,‘टी.सी.काट कर हाथ में दे दी जाएगी’, ‘अब स्कूल मत आना’, जैसे जुमले आए दिन बच्चे सुनते रहते रहे हैं।
  • स्कूल में मानसिक और शारीरिक प्रताड़ना के चलते कई बच्चे आजीवन के लिए अपना आत्मविश्वास खो देते हैं। इस प्रताड़ना से कक्षा-कक्षों में ही ऐसी प्रतिस्पर्धा जन्म ले लेती है, जिसमें बच्चे असहयोग और व्यक्तिवादी प्रगति की ओर उन्मुख हो जाते हैं।
  • अभी तक बच्चों की शिकायतों को कमोबेश सुना ही नहीं जाता था। यदि हाँ भी तो स्कूल प्रबंधन स्तर पर ही उसका अस्थाई निवारण कर दिया जाता था। शिकायतों के मूल में जाने की प्रायः कोशिश ही नहीं की जाती थी। भेदभाव, प्रवेश न देने के मामले और पिटाई के हजारों प्रकरण स्कूल से बाहर जाते ही नहीं थे।
  • राज्यों में बाल अधिकारों की सुरक्षा के राज्य आयोग कछुआ चाल से चलते आए हैं। बहुत कम मामले ही इन आयोग तक पहुंचते हैं। स्कूल प्रबंधन ऐसा माहौल बनाने में अब तक सफल रहा है कि अब तक पीड़ीत बच्चे या उनके अभिभावक आयोग तक शिकायतें प्रायः ले जाते ही नहीं है।
  • विद्यालयी बच्चों के मामलों में अब तक गैर-सरकारी संगठन एवं जागरुक नागरिक प्रायः कम ही रुचि लेते रहे हैं। स्कूल में बच्चों के हितों को लेकर अंगुलियों में गिनने योग्य ही संगठन हैं जो छिटपुट अवसरों पर शिक्षा के क्षेत्र में बच्चों के अधिकारों के प्रचार-प्रसार की बात करते रहे हैं। ऐसे बहुत कम मामले हैं, जिनमें इन गैर सरकारी संगठनों ने बच्चों के अधिकारों के हनन के मामलों में पैरवी की हो।
  • अब तक स्कूल केवल पढ़ने-पढ़ाने का केन्द्र रहे हैं। अब यह अधिनियम स्कूल को बाध्य करता है कि वह बाल केन्द्रित भावना के अनुरूप कार्य करे। कुल मिलाकर स्कूल अब तक बच्चों की बेहतर देखभाल करने के केन्द्र तो नहीं बन सके हैं।

विशेष बिंदु 

  • जोंन डीवी ने बाल्केंद्रित शिक्षा का समर्थन किया है . 
  • जॉन डीवी ने "लैब विद्यालयों को प्रगतिशील विद्यालय " का उदाहरण माना है. 
  • प्रगतिशील शिक्षा केवल प्रस्तावीत पाठ्यपुस्तकों पर आधारित अनुदेशों में विश्वास नहीं करती, न ही मात्र  अच्छे अंको को प्राप्त करने बल दिया जाता है . 
  • प्रगतिशील शिक्षा में अध्ययन की समय -सरणी और बैठक -व्यवस्था आदि में पर्याप्त लचीलापन होता है . 
  • बाल-केन्द्रित शिक्षा पद्धति अपनाकर "शिक्षण से अधिगम" पर बल दिया जा सकता है .
  • छात्रों में मुक्त ढंग से सिखने की योग्यताओं का विकास  करना ही बाल केन्द्रित शिक्षा का उद्देश्य होता है . 
  • बाल केन्द्रित शिक्षा में बालकों की अधिगम-प्रक्रिया में पूर्ण सहभागिता ली जाती है . 
  • बाल केन्द्रित शिक्षा प्रकृतिवाद की देंन है . प्राकृतिक ज्ञान का सिद्धांत बताता है की स्वाभाविक रूप से सिखने  और विकसित होने का अधिकार बालक का ही है . 
  • निःशक्त बच्चों के लिए केंदीय प्रायोजित योजना का नाम " समेकित शिक्षा योजना " है इसका उद्देश्य यह है की निशक्त बच्चे भी नियमित /सामान्य विद्यालयों में सभी के साथ शैषिक अवसर पा सके .
  • परिवार अनौपचारिक शिक्षा का साधन है . अनौपचारिक शिक्षा का आरम्भ परिवेश से हो जाता है . इसके लिए किसी संस्था की आवश्यकता नहीं होती . 
  • "परिवार जीवन की पहली पाठशाला है " दुर्खिम 
  • एक शिक्षक स्वयम आदर्श रूप से व्यव्हार कर विद्यार्थियों में सामाजिक मूल्यों को विकसित कर सकता है .
  • शिक्षा का चरम उद्देश्य है " बालक का सर्वंगीण विकास " .

Saturday 24 September 2016

मनोविज्ञान के सिद्धांत व प्रतिपादक / जनक

सिद्धांत प्रतिपादक/जनक
=> मनोविज्ञान के जनक                    =  विल्हेम वुण्ट
=> आधुनिक मनोविज्ञान के जनक    = विलियम जेम्स
=> प्रकार्यवाद(Functionalism) सम्प्रदाय के जनक     = विलियम जेम्स
=> आत्म सम्प्रत्यय(Self concept) की अवधारणा   = विलियम जेम्स

=> शिक्षा-मनोविज्ञान के जनक         = एडवर्ड थार्नडाइक
=> प्रयास एवं त्रुटि(Trial and error Method) सिद्धांत   = थार्नडाइक
=> प्रयत्न एवं भूल का सिद्धांत  = थार्नडाइक
=> संयोजनवाद का सिद्धांत (Connectionism) = थार्नडाइक
=> उद्दीपन-अनुक्रिया का सिद्धांत(Stimulus-Response Theory)= थार्नडाइक
=> S-R थ्योरी के जन्मदाता            = थार्नडाइक
=> अधिगम का बन्ध सिद्धांत           = थार्नडाइक
=> संबंधवाद का सिद्धांत                 = थार्नडाइक
=> प्रशिक्षण अंतरण का सर्वसम अवयव(Identical Elements) का सिद्धांत    = थार्नडाइक
=> बहुखंड या बहुतत्व बुद्धि का सिद्धांत (Multi-factor Theory, मूर्त, अमूर्त और सामाजिक बुद्धि ))= थार्नडाइक

=> बिने-साइमन बुद्धि परीक्षण के प्रतिपादक             = अल्फ्रेड बिने एवं साइमन
=> बुद्धि परीक्षणों के जन्मदाता (1905)                            = अल्फ्रेड बिने
=> एकखंड बुद्धि का सिद्धांत(Unifactor Theory) = अल्फ्रेड बिने

=> दो खंड बुद्धि का सिद्धांत(Two factor Theory)= स्पीयरमैन
=> तीन खंड बुद्धि का सिद्धांत = स्पीयरमैन
=> सामान्य व विशिष्ट तत्वों के सिद्धांत के प्रतिपादक(g-s factor, general-specific)   = स्पीयरमैन
=> बुद्धि का द्वय शक्ति का सिद्धांत                             = स्पीयरमैन

=> त्रि-आयाम बुद्धि का सिद्धांत ( 180 )                     =JP गिलफोर्ड
=> बुद्धि संरचना का सिद्धांत(Structure of Intellect)  = गिलफोर्ड

=> समूह खंडबुद्धि का सिद्धांत(Group Factor Theory)   = थर्स्टन
(7  मानसिक योग्यताओं का समूह
=> युग्म तुलनात्मक निर्णय विधि के प्रतिपादक         = थर्स्टन
=> क्रमबद्ध अंतराल विधि के प्रतिपादक                    = थर्स्टन
=> समदृष्टि अन्तर विधि के प्रतिपादक                     = थर्स्टन व चेव

=> न्यादर्श या प्रतिदर्श(वर्ग घटक) बुद्धि का सिद्धांत     = थॉमसन
=> पदानुक्रमिक(क्रमिक महत्व) बुद्धि का सिद्धांत(Hiearchy)   = बर्ट एवं वर्नन
=> तरल-ठोस बुद्धि का सिद्धांत(Fluid and Crystallized Intelligence)             = आर. बी.केटल
=> प्रतिकारक (विशेषक) सिद्धांत के प्रतिपादक (16 Personality Factor Theory-16PF)= आर. बी.केटल

=> बुद्धि 'क' और बुद्धि 'ख' का सिद्धांत                       =  D O हैब
=> बुद्धि इकाई का सिद्धांत                                      = स्टर्न एवं जॉनसन
=> बुद्धि लब्धि(IQ-Intelligence Quotient) ज्ञात करने के सुत्र के प्रतिपादक = विलियम स्टर्न
=> संरचनावाद(Structuralism) सम्प्रदाय के जनक   =  Wilhelm Maximilian Wundt के शिष्य टिंचनर (Edward B. Titchener)
=> प्रयोगात्मक मनोविज्ञान(Experimental Psychology) के जनक=विल्हेम वुण्ट-1879 में लिपजिग जर्मनी में पहली  प्रयोगशाला

=> विकासात्मक मनोविज्ञान(Developmental Psychology) के प्रतिपादक               = जीन पियाजे
=> संज्ञानात्मक विकास का सिद्धांत(Cognitive Development Theory-4 Stages)  = जीन पियाजे

=> मूल प्रवृत्तियों(Basic Instnicts)के सिद्धांत के जन्मदाता                 = विलियम मैक्डूगल
=> हार्मिक का सिद्धांन्त                                      = विलियम मैक्डूगल

=> मनोविज्ञान - मन मस्तिष्क का विज्ञान             = पोंपोनोजी
=> क्रिया-प्रसूत अनुबंधन(Operant Condioning) का सिद्धांन्त                    =B F  स्किनर
=> सक्रिय अनुबंधन का सिद्धांन्त                          = B F स्किनर

=> अनुकूलित अनुक्रिया का सिद्धांत                        = इवान पेट्रोविच पावलव (I P Pavlov)
=> संबंध प्रत्यावर्तन का सिद्धांत                             = I P पावलव
=> शास्त्रीय अनुबंधन का सिद्धांत(Classical Conditioning)= इवान पेट्रोविच पावलव
=> प्रतिस्थापक का सिद्धांत                                   = इवान पेट्रोविच पावलव

=> प्रबलन (पुनर्बलन) का सिद्धांत                           = सी. एल. हल
=> व्यवस्थित व्यवहार का सिद्धांत                         = सी. एल. हल
=> सबलीकरण का सिद्धांत                                   = सी. एल. हल
=> संपोषक का सिद्धांत                                        = सी. एल. हल
=> चालक / अंतर्नोद(प्रणोद(Drive Reduction Theory) का सिद्धांत                  = सी. एल. हल

=> अधिगम का सूक्ष्म सिद्धान्त                             = कोहलर ( Sultan Chimpanzee )
=> सूझ या अन्तर्दृष्टि का सिद्धांत(Insight Learning) = कोहलर, वर्दीमर, कोफ्का
=> गेस्टाल्टवाद सम्प्रदाय(Gestalt-German Word-Whole/form)के जनक = कोहलर, वर्दीमर, कोफ्का

=> क्षेत्रीय सिद्धांत (Field Theory)= Kurt लेविन
=> तलरूप कासिद्धांत                                          = Kurt लेविन

=> समूह गतिशीलतासम्प्रत्यय के प्रतिपादक           = Kurt लेविन
=> सामीप्य संबंधवाद का सिद्धांत                          = Kurt गुथरी

=> साईन(चिह्न) का सिद्धांत                                  = टॉलमैन
=> सम्भावना सिद्धांत के प्रतिपादक                       = टॉलमैन

=> अग्रिम संगठकप्रतिमान के प्रतिपादक               = डेविड आसुबेल
=> भाषायीसापेक्षता प्राक्कल्पना के प्रतिपादक        = व्हार्फ
=> मनोविज्ञान के व्यवहारवादी(Behaviourism) सम्प्रदाय के जनक  = जोहन बी. वाटसन
=> अधिगम या व्यव्हार सिद्धांत के प्रतिपादक         = क्लार्क Hull
=> सामाजिक अधिगम(Social Learning) सिद्धांत के प्रतिपादक          = अल्बर्ट बण्डूरा
=> पुनरावृत्ति का सिद्धांत                                    = G  स्टेनले हॉल
=> अधिगम सोपानकी  के प्रतिपादक         = गेने (Gagne)
=> मनोसामाजिक विकास का सिद्धांत(Psychosocial Development) एरिक एरिक्सन

=> प्रोजेक्ट प्रणाली(योजना विधि ) से करके सीखना का सिद्धांत      = जान ड्यूवी के student किल्पैट्रिक
=> अधिगम मनोविज्ञान का जनक                       = हर्मन इबिनघौस (Hermann Ebbinghaus )

=> अधिगम अवस्थाओं के प्रतिपादक                    = जेरोम ब्रूनर
=> संरचनात्मक अधिगम का सिद्धांत(Constuctivism)= जेरोम ब्रूनर

=> सामान्यीकरण का सिद्धांत(Generalization)= सी. एच.जड
=> शक्ति मनोविज्ञान का जनक                             = वॉल्फ
=> अधिगम अंतरण का मूल्यों के अभिज्ञान का सिद्धांत= बगले
=> भाषा विकास का सिद्धांत(Language Development) = नोआम चोमस्की

=> माँग-पूर्ति(आवश्यकता-पदानुक्रम-Hiarchy of Needs) का सिद्धांत      = अब्राहम मैस्लो (मास्लो)
=> स्व-यथार्थीकरण अभिप्रेरणा का सिद्धांत               = अब्राहम मैस्लो (मास्लो)
=> आत्मज्ञान का सिद्धांत                                         = अब्राहम मैस्लो (मास्लो)

=> उपलब्धि-अभिप्रेरणा का सिद्धांत( अचीवमेंट Motivation)       =  डेविड सी.मेक्लिएंड
=> प्रोत्साहन का सिद्धांत                                            = बोल्स व काफमैन
=> शीलगुण(विशेषक) सिद्धांत के प्रतिपादक(Trait Theory ) = आलपोर्ट

=> व्यक्तित्व मापन का माँग का सिद्धांत                     = हेनरी मुरे
=> कथानक बोधपरीक्षण विधि के प्रतिपादक              = मोर्गन व मुरे
=> प्रासंगिक अन्तर्बोध परीक्षण (TAT-Thematic Apperception Test,) विधि के प्रतिपादक = मोर्गन व मुरे

=> बाल -अन्तर्बोध परीक्षण (C.A.T.-Children Apperception Test) विधि के प्रतिपादक = लियोपोल्ड बैला
=> रोर्शा स्याही ध्ब्बा परीक्षण (I.B.T.-Ink Blot Test) विधि के प्रतिपादक                   = हरमन रोर्शा
=> वाक्य पूर्ति परीक्षण (Sentence Completion Test) विधि के प्रतिपादक                   = पाईन व टेंडलर

=> व्यवहार परीक्षण विधि के प्रतिपादक                          = मे एवं हार्टशार्न

=> किंडरगार्टन(बालोद्यान ) विधि के प्रतिपादक                 = फ्रोबेल
=> खेल प्रणाली के जन्मदाता                                             = फ्रोबेल

=> मनोविश्लेषण(Psychoanalysis) विधि के जन्मदाता                                = सिगमंड फ्रायड
=> स्वप्न-विश्लेषण(Interpretation of Dreams विधि के प्रतिपादक                            = सिगमंड फ्रायड

=> प्रोजेक्ट(प्रयोग) विधि के प्रतिपादक                          = विलियम हेनरी क्लिपेट्रिक (जान ड्यूवी के शिष्य)
=> मापनी भेदक विधि के प्रतिपादक                              = एडवर्ड्स व क्लिपेट्रिक

=> डाल्टन विधि की प्रतिपादक                                     = मिस हेलेन पार्कहर्स्ट
=> मांटेसरी विधि की प्रतिपादक                                   = मेडम मारिया मांटेसरी
=> डेक्रोली विधि के प्रतिपादक(Teaching in Natural environment)= ओविड डेक्रोली
=> विनेटिका(इकाई) विधि के प्रतिपादक                        = कार्लटन वाशबर्न
=> ह्यूरिस्टिक(खोज) विधि के प्रतिपादक                        = एच.ई. आर्मस्ट्रांग
=> समाजमिति(Sociometry) विधि के प्रतिपादक              = जे. एल. मोरेनो
=> योग निर्धारण विधि के प्रतिपादक                            = लिकर्ट
=> स्केलोग्राम विधि के प्रतिपादक                                = गटमैन
=> विभेद शाब्दिक विधि के प्रतिपादक                           = आसगुड
=> स्वतंत्र शब्द साहचर्य परीक्षण विधि के प्रतिपादक         = फ़्रांसिस गाल्टन
=> स्टेनफोर्ड- बिने स्केल परीक्षण के प्रतिपादक               = टरमन
=> पोरटियस भूल-भुलैया परीक्षण के प्रतिपादक               = एस.डी. पोरटियस
=> वेश्लर-वेल्यूब बुद्धि परीक्षण के प्रतिपादक                     = डी.वेश्लवर

=> आर्मी अल्फा परीक्षण के प्रतिपादक                           = आर्थर एस. ओटिस
=> आर्मी बिटा परीक्षण के प्रतिपादक                              = आर्थर एस. ओटिस

=> हिन्दुस्तानी बिने क्रिया परीक्षण के प्रतिपादक              = सी.एच.राइस
=> प्राथमिक वर्गीकरण परीक्षण के प्रतिपादक                  = जे. मनरो
=> बाल अपराध विज्ञान का जनक                                 = सीजर लोम्ब्रसो
=> वंश सुत्र के नियम के प्रतिपादक                                 = जोन ग्रैगर मैंडल
=> ब्रेल लिपि के प्रतिपादक                                            = लुई ब्रेल
=> साहचर्य सिद्धांत के प्रतिपादक                                    = एलेक्जेंडर बैन
=> "सीखने के लिएसीखना" सिद्धांत के प्रतिपादक               = हर्लो
=> शरीर रचना का सिद्धांत                                            = शैल्डन
=> व्यक्तित्व मापन के जीव सिद्धांत के प्रतिपादक                = गोल्डस्टीन

=> मनोविज्ञान के जनक = विल्हेम वुण्ट
=> आधुनिक मनोविज्ञान के जनक = विलियम जेम्स
=> प्रकार्यवाद सम्प्रदाय के जनक = विलियम जेम्स
=> आत्म सम्प्रत्यय की अवधारणा = विलियम जेम्स
=> शिक्षा-मनोविज्ञान के जनक = एडवर्ड थार्नडाइक
=> प्रयास एवं त्रुटि सिद्धांत = थार्नडाइक
=> प्रयत्न एवं भूल का सिद्धांत = थार्नडाइक
=> संयोजनवाद का सिद्धांत = थार्नडाइक
=> उद्दीपन-अनुक्रिया का सिद्धांत = थार्नडाइक
=> S-R थ्योरी के जन्मदाता = थार्नडाइक
=> अधिगम का बन्ध सिद्धांत = थार्नडाइक
=> संबंधवाद का सिद्धांत = थार्नडाइक
=> प्रशिक्षण अंतरण का सर्वसम अवयव का सिद्धांत = थार्नडाइक
=> बहुखंड या बहुतत्व बुद्धि का सिद्धांत = थार्नडाइक
=> बिने-साइमन बुद्धि परीक्षण के प्रतिपादक =अल्फ्रेडबिने एवं साइमन
=> बुद्धि परीक्षणों के जन्मदाता =अल्फ्रेडबिने
=> एकखंड बुद्धि का सिद्धांत =अल्फ्रेडबिने
=> दो खंड बुद्धि का सिद्धांत = स्पीयरमैन
=> तीन खंड बुद्धि का सिद्धांत = स्पीयरमैन
=> सामान्य व विशिष्ट तत्वों के सिद्धांत के प्रतिपादक = स्पीयरमैन
=> बुद्धि का द्वय शक्ति का सिद्धांत = स्पीयरमैन
=> त्रि-आयाम बुद्धि का सिद्धांत ( 150 ) = गिलफोर्ड
=> बुद्धि संरचना का सिद्धांत = गिलफोर्ड
=> समूह खंडबुद्धि का सिद्धांत = थर्स्टन
=> युग्म तुलनात्मक निर्णय विधि के प्रतिपादक = थर्स्टन
=> क्रमबद्ध अंतराल विधि के प्रतिपादक = थर्स्टन
=> समदृष्टि अन्तर विधि के प्रतिपादक = थर्स्टन व चेव
=> न्यादर्श या प्रतिदर्श(वर्ग घटक) बुद्धि का सिद्धांत = थॉमसन
=> पदानुक्रमिक(क्रमिक महत्व) बुद्धि का सिद्धांत = बर्ट एवं वर्नन
=> तरल-ठोस बुद्धि का सिद्धांत = आर. बी.केटल
=> प्रतिकारक (विशेषक) सिद्धांत के प्रतिपादक = आर. बी.केटल
=> बुद्धि ‘क’ और बुद्धि ‘ख’ का सिद्धांत = D O हैब
=> बुद्धि इकाई का सिद्धांत = स्टर्न एवं जॉनसन
=> बुद्धि लब्धि ज्ञात करने के सुत्र के प्रतिपादक = विलियम स्टर्न
=> संरचनावाद साम्प्रदाय के जनक = WilhelmMaximilianWundtके शिष्यटिंचनर(Edward B. Titchener)
=> प्रयोगात्मक मनोविज्ञान के जनक = विल्हेम वुण्ट-1879 में लिपजिग जर्मनी में पहली प्रयोगशाला
=> विकासात्मक मनोविज्ञान के प्रतिपादक = जीन पियाजे
=> संज्ञानात्मक विकास का सिद्धांत = जीन पियाजे
=> मूल प्रवृत्तियों के सिद्धांत के जन्मदाता = विलियम मैक्डूगल
=> हार्मिक का सिद्धांन्त = विलियम मैक्डूगल
=> मनोविज्ञान – मन मस्तिष्क का विज्ञान = पोंपोनोजी
=> क्रिया-प्रसूत अनुबंधन का सिद्धांन्त =B F स्किनर
=> सक्रिय अनुबंधन का सिद्धांन्त = B F स्किनर
=> अनुकूलित अनुक्रिया का सिद्धांत = इवान पेट्रोविच पावलव (I P Pavlov)
=> संबंध प्रत्यावर्तन का सिद्धांत = I P पावलव
=> शास्त्रीय अनुबंधन का सिद्धांत = इवान पेट्रोविच पावलव
=> प्रतिस्थापक का सिद्धांत = इवान पेट्रोविच पावलव
=> प्रबलन (पुनर्बलन) का सिद्धांत = सी. एल. हल
=> व्यवस्थित व्यवहार का सिद्धांत = सी. एल. हल
=> सबलीकरण का सिद्धांत = सी. एल. हल
=> संपोषक का सिद्धांत = सी. एल. हल
=> चालक / अंतर्नोद(प्रणोद) का सिद्धांत = सी. एल. हल
=> अधिगम का सूक्ष्म सिद्धान्त = कोहलर ( Sultan Chimpanzee )
=> सूझ या अन्तर्दृष्टि का सिद्धांत = कोहलर, वर्दीमर, कोफ्का
=> गेस्टाल्टवाद सम्प्रदाय के जनक = कोहलर, वर्दीमर, कोफ्का
=> क्षेत्रीय सिद्धांत =Kurtलेविन
=> तलरूप कासिद्धांत =Kurtलेविन
=> समूह गतिशीलतासम्प्रत्यय के प्रतिपादक =Kurtलेविन
=> सामीप्य संबंधवाद का सिद्धांत =Kurtगुथरी
=> साईन(चिह्न) का सिद्धांत = टॉलमैन
=> सम्भावना सिद्धांत के प्रतिपादक = टॉलमैन
=> अग्रिम संगठकप्रतिमान के प्रतिपादक = डेविड आसुबेल
=> भाषायीसापेक्षता प्राक्कल्पना के प्रतिपादक = व्हार्फ
=> मनोविज्ञान के व्यवहारवादी सम्प्रदाय के जनक = जोहन बी. वाटसन
=> अधिगम या व्यव्हार सिद्धांत के प्रतिपादक = क्लार्क Hull
=> सामाजिक अधिगम सिद्धांत के प्रतिपादक = अल्बर्ट बण्डूरा
=> पुनरावृत्ति का सिद्धांत = G स्टेनले हॉल
=> अधिगम सोपानकी के प्रतिपादक = गेने
=>मनोसामाजिकविकासकासिद्धांत =एरिकएरिक्सन
=> प्रोजेक्ट प्रणाली से करके सीखना का सिद्धांत = जान ड्यूवी
=> अधिगम मनोविज्ञान का जनक =हर्मन इबिनघौस(Hermann Ebbinghaus )
बुद्धि का सिद्धान्त :
1. नवीन परिस्थितियों से चेतन अनुकूलन ही बुद्धि है उक्त परिभाषा है?
रोस ने 
2. वुडवर्थ के अनुसार बुद्धि की परिभाषा है? 
बुद्धि कार्य करने की एक विधि है|
3. बुद्धि अमूर्त विचारों के बारे में सोचने की योग्यता है - ये कथन किसका है? 
टरमन 
4. बुद्धि कितने प्रकार की है?
तीन प्रकार : 1- मूर्त 2- अमूर्त 3- सामाजिक ।
5. 1904 में दो कारक सिद्धान्त का प्रतिपादन किसने किया?
स्पीयरमैन ने ।
6. श्रमिक के लिए कितनी बुद्धि - लब्धि पर्याप्त है?
70 से 85 बुद्धि - लब्धि ।
7. बालक का वह गुण जिसमे किसी नवीन वस्तु का निर्माण किया जाता है, वह कहलाती है?
सृजनात्मकता |
8. जालोटा ने परीक्षण दिया है?
सामूहिक बुद्धि परीक्षण । 
9. किस आयु में बालक की मानसिक योग्यता का लगभग पूर्ण विकास हो जाता है? 
14वर्ष ।
10. बहुखण्ड सिद्धान्त का प्रतिपादन किसने किया?
थार्नडाइक ने । 
11. बुद्धि - लब्धि को ज्ञात करने का सर्वप्रथम सूत्र किस मनोवैज्ञानिक ने दिया है?
स्टर्न ने ।
12.बुद्धि - लब्धि निकालने का सही फार्मूला क्या है?
मानसिक आयु / वास्तविक आयु ×100
13. थस्टर्न का समूह तत्व सिद्धान्त बुद्धि के कितने प्राथमिक कारकों का वर्णन करता है?
सात कारकों का ।
14. बुद्धि परीक्षण का जनक किसे माना जाता है?
बिने - साइमन ।
15. भारत में सर्वप्रथम बुद्धि परीक्षण का प्रारम्भ कब हुआ?
1922 में ।
16. बुद्धि ओर विकास पूरक है -
एक - दुसरे के ।
17. वर्नन. ने किस सिद्धान्त का प्रतिपादन किया?
क्रमिक महत्व सिद्धान्त का । 
18. प्रतिदर्शन सिद्धान्त के प्रतिपादक है?
थोमसन 
19.  त्रि - अायाम सिद्धान्त के प्रवर्तक है?
गिलफर्ड 
20. बुद्धि परीक्षण को कितने भागो में बाटाँ है? 
दो भागों में ।
21. बुद्धि पहचानने तथा सुनने कि शक्ति है, यह मत है?
बिने का ।