Monday, 19 September 2016

गणित का इतिहास

                          गणित का इतिहास 

वेज्ञानिक प्रगति का मूल आधार गणित ही है .                                           
गणित विज्ञान की मुख्यतः तीन शाखाएं है – अंकगणित , बीजगणित एवं रेखागणित             
अंकगणित                      
अंकगणित का विकास वैज्ञानिक रूप से 500 से 1000 ई. के मध्य हुआ माना जाता है . माना जाता है की 10 आधार वाली संख्या पध्धति का विकास भारत में किया गया. 
भारत के विश्व प्रशिद्ध गणितज्ञ –      
1.         आर्यभट ( 476 ई.स.)             2. भास्कराचार्य ( 600 ई.स. ) 
3.वराहमिहिर ( 505 ई.स.)           4. बौधायन 
5. ब्रह्गुप्त ( 598 ई.स.)   
                 भारतीय इतिहास का स्वर्ण युग  ‘ गुप्तकाल ‘ माना जाता है 
                     आर्यभट ( 476 ई.स.)  -               
  •   आर्यभट का जन्म कुसुमपुर ( पटना) में  476 ई. में हुआ था.     
  •   इन्होने अपने ग्रंथो में गणितीय सिद्धांतो का स्पस्ट व् सटीक प्रतिपादन किया है.         
  •   इन्होने 499 ई. में २३ वर्ष की अवस्था में ही ‘आर्यभटीय ‘ नामक महत्वपूर्ण ग्रन्थ की रचना की थी . आर्यभटीय ग्रन्थ में संख्याओ को अक्षर द्वारा व्यक्त करने की संकेत लिपि , वर्गमूल , घनमूल निकलने की विधि , क्षेत्रफल , आयतन आदि निकलने की विधि का उल्लेख है .


                              वराहमिहिर –                       
  • Ø  वराहमिहिर के पिता आदित्यादास गणित एवं विज्ञान के ज्योतिष थे.     
  • Ø  उज्जैन से 20 किमी पूर्व की ओर स्थित कापित्थ्का ( कायथा) ग्राम में इनका निवास था.
  • Ø  मध्यप्रदेश के लिए गौरव की बात है की आचार्य वराहमिहिर द्वारा अपने पिता की स्मृति में स्थापित ‘ कपित्थ्का गुरुकुल’ 700 वर्षो तक गणित का विख्यात केंद्र रहा है . गणित के इतिहास में यह ‘उज्जैन स्कुल’ के नाम से जाना जाता है .
  • Ø  ब्रह्मगुप्त महावीराचार्य एवं भास्कराचार्य इसी गुरुकुल के उद्भट गणितग्य रहे है .
  • Ø  लगभग 770 ई. में उज्जैन के एक हिन्दू विद्वान कंक को बगदाद के प्रसिद्द दरबार में अब्बा सईद खलीफा अलाम्न्सुर ने आमंत्रित किया था. इस प्रकार हिन्दू अंकन पद्धति अरब पंहुची . कंक ने हिन्दू ज्योतिष विज्ञान तथा गणित अरब के विद्वानों को पढाया . कंक की सहायत से उन्होंने ब्रम्हगुप्त के ‘ ब्रम्हस्फुट सिद्धांत’ का अरब में अनुवाद किया .


                              ब्रम्हगुप्त –           
  • ·         ज्योतिष व गणित विज्ञान के महान विद्वान ब्रम्हगुप्त का जन्म राजस्थान के भीनमाल नामक स्थान में 598 ई. में हुआ था.      
  • ·         इन्होने “ ब्रम्हस्फुट सिद्धांत” और ‘खान्द्खाध ‘ नामक ग्रन्थ की रचना की .         
  • ·         अरब वासियों को गणित एवं ज्योतिष का ज्ञान सबसे पहले ब्रम्हगुप्त के ग्रंथो से ही मिला है .                                                                   
  • ·         अंकगणित भाग में ब्रम्हगुप्त ने घनमूल,गणित की चार विधिय, वर्ग,घन ,भिन्न,अनुपात, शून्य,अनंत आदि प्रकरणों पर सिद्धांतों की रचना की है                               .


                        भास्कराचार्य              
  •   सिद्धांत शिरोमणि के रचयिता विश्वविख्यात भास्कराचार्य का जन्म महाराष्ट्र 1114 ई.में हुआ था           
  •   भास्कराचार्य ने 36 वर्ष की अवस्था में ‘सिद्धांत शिरोमणि’ की रचना की थी, इसमें गणिताध्याय और गोलाध्याय दो भाग है .       
  • Ø  इनकी दूसरी रचना  ‘ लीलावती ‘ है जिसमे अंकगणित, छेत्रफल,घनफल, ब्याज आदि का विवरण है , लीलावती ग्रन्थ में पाई का मान, त्रिभुजों और चतुर्भुजो के छेत्रफल , गोले के आयतन आदि के प्रश्न और उत्तर दिए गए है .                                      
  • Ø  भास्कर्चार्य की रचनाओ का अनुवाद अकबार ने करवाया , अंग्रेजी भाषा में कोलब्रुक,टेलर ने अनुवाद किया है .     


                          बौधायन                             
  • Ø  बौधायन का सम्बन्ध “ बौधायन सुल्वा सूत्र “ (लगभग 800 इसा पूर्व) से है .
  • Ø  सुल्वा सूत्रों में उल्लेखित रचना विधियों से पाइथागोरस प्रमेय की उत्पत्ति मिल जाती है.


शून्य का आविष्कार –
  • Ø  अंकगणित का आधार अंक प्रणाली है , जिसमे शून्य का महत्वपूर्ण स्थान है . इसका श्रेय संस्कृत व्याकर्नाचार्य पाणिनि (500 ई.पू.) तथा पिंगल (200 ईपू.) को दिया जाता है .
  • Ø   शून्य का आविष्कार वैदिक ऋषि गृत्समद ने किया था , इस प्रकार का भी उल्लेख मिलता है.
  • Ø  शून्य के लिए एक चिन्ह निश्चित करने का सर्वप्रथम साक्ष्य बक्शाली पांडुलिपि ( 300-400ई.) में पाया जाता है.
  • Ø  गणित की अनेक विधाओ सहित शून्य एवं अनंत की अवधारणाओ पर व्यापक शोध एवं उनके अनुप्रयोग ‘ वराहमिहिर द्वारा स्थापित कपित्थ्का गुरुकुल’ उज्जैन की महान देन है .
  • Ø  शून्य (0) का आविष्कार भारत में ही हुआ है .
  • Ø  अरब देश में जब वैदिक गणित का प्रसार हुआ तो उस देश में 0 को ‘ हिन्दसा’ नाम दिया है.
  •                     बीजगणित                   
अंकगणित तथा बीजगणित में काफी समानता है परन्तु मुख्य अंतर यह है की अंकगणित में व्यक्त (ज्ञात) राशी की बात की जाती है जबकि बीजगणित में अव्यक्त ( अज्ञात) राशी की बात की जाति है . अज्ञात से तात्पर्य उस राशी से है जिसका मान प्रारंभ में ज्ञात न हो .
बीजगणित के लिए अंग्रेजी शब्द (Algebra) जो की ‘अल-मुह्तासर-फी हिसाब अल –ज़ब्र वल –मुकाबला ‘ नामक पुस्तक से आया है. इसे बगदाद के निवासी मोहम्मद इब्न मूसा अबू अब्दुल्ला अल –ख्वृज्मी ने सन 825 में लिखा था . किन्तु आर्यभट और ब्रम्हगुप्त जैसे भारतीय गणिततज्ञों ने इससे पहले ही इस छेत्र में बहुत सा कम किया था .
                              रेखागणित      
भारत में वैदिक काल से ही रेखागणित की नीव पड़ गयी थी . बौधायन द्वारा रचित ‘सुल्व सूत्रों’ में ज्यामिति के बारे में जानकारी मिलती है.
रेखागणित का नाधुनिक अध्ययन, यूनान के गणितग्य युक्लिड द्वारा उनकी पुस्तक ‘एलिमेंट्स’ में वर्णित, परिभाशाओ के आधार पर किया जाता है .

पाई का मान – आर्यभट पहले गणितग्य थे जिन्होंने परिधि और व्यास के अनुपात अर्थात पाई का लगभग परिमित मान निकाला था .


 = परिधि / व्यास  = 62832/20000 = 3.1416

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