राष्ट्रिय पाठ्यचर्या की रुपरेखा अनुसार गणित का शिक्षण
- गणित की शिक्षा का मुख्य उद्देश्य बच्चे की गनितिकरण की क्षमताओं का विकास करना है .
- स्कूली गणित का सिमित लक्ष्य है - लाभप्रद क्षमताओं का विकास , विशेषकर अंक ज्ञान से जुडी क्षमताएँ , सांख्यिक संक्रियाए , माप ,दशमलव व प्रतिशत .
- इससे उच्च उद्देश्य है - बच्चे के साधनों को विकसित करना ताकि वह गणितीय ढंग से सोच सके व तर्क कर सके , मान्यताओं के तार्किक परिणाम निकल सके और अमूर्त को समझ सके .
- गणित माध्यमिक स्कुल तक एक अनिवार्य विषय है .
- बच्चे गणित से भयभीत होने की बजाए उसका आनंद उठाए ;
- बच्चे महत्वपूर्ण गणित सीखें , गणित में सूत्रों व यांत्रिक प्रक्रियाओं से आगे भी बहुत कुछ है .
- बच्चे गणित को ऐसा विषय मने जिस पर वे आपस में बात कर सकते है . जिससे सम्प्रेषण हो सकता है .
- बच्चे सार्थक समस्याए उठाए और उन्हें हल करें
- बच्चे अमूर्त का प्रयोग संबंधो को समझने ,संरचनाओ को देख पाने और चीजो का विवेचन करने, कथनों की सत्यता या असत्यता को लेकर तर्क करने में कर पाएं
- बच्चे गणित की मूल संरचना को समझें - अंकगणित,बीजगणित,रेखागणित,त्रिकोंमिति . स्कूली गणित सभी मूल तत्व अमूर्त की प्रणाली , संघटन और सामान्यीकरण के लिए मुहैया करते है .
- अध्यापक कक्षा में प्रत्येक बच्चे के साथ इस विश्वास के आधार पर काम करे की प्रत्येक बच्चा सिख सकता है.
- समस्या समाधान की युक्तियाँ -(अमूर्तता,परिमाणन ,सद्रश्यता,स्थिति विश्लेषण,समस्या को सरल रूप में बदलना ,अनुमान लगाना व उसकी पुस्टी करना ). बच्चों को सीखाना .
- गणित व अन्य विषयों के अध्ययन के बीच सम्बन्ध बनाने की भी आवश्यकता है , जब बच्चे ग्राफ बनाना सीखते है तो उन्हें भू-विज्ञान सहित विभिन्न विज्ञानों के कार्यात्मक संबंधो के बारे में सोचने के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए.
- बहुत से बच्चे गणित से डरते है और इस विषय में असफलता से भयभीत रहते है.वे जल्दी ही गणित की गंभीर पढाई से विमुख हो जाते है .
- यह पाठ्यक्रम केवल इससे विमुख होने वालों के लिए ही निराशाजनक नहीं है बल्कि यह प्रतिभाशाली बच्चो के लिए भी कोई चुनौति नहीं पेश करती .
- समस्याएँ ,अभ्यास व मूल्यांकन पद्दति यांत्रिक है और दुहरावग्रस्त है . इसमें संगणना पर अत्यधिक जोर दिया गया है . इसमें स्थानिक चिंतन जैसे गणितीय क्षेत्रों को पर्याप्त स्थान नहीं दिया गया है.
- अध्यापकों में आत्मविश्वास, व तयारी की कमी है और उन्हें आवश्यक मदद भी नहीं मिल रही है .
- पूर्व प्राथमिक स्तर-
- सारा अधिगम खेल के माध्यम से होता है , उपदेशात्मक सम्प्रेषण के जरिये नहीं .
- गिनती को क्रम में रटने की बजाय बच्चो को यह सिखने और समझने की जरुरत है की छोटे समुच्चयों के सन्दर्भ में नाम के खेल और संख्या में और गिनती एवं मात्रा में क्या जुडाव है .
- सरल तुलनाए और वर्गीकरण करना ,
- बच्चो को अपने विचारो को व्यक्त करने के लिए उनकी भाषा को प्रोत्साहित करना .
- प्राथमिक स्तर पर -
- बच्चे में गणित के लिए सकारात्मक रुझान और रूचि विकसित करना .
- गणितीय खेल , पहेलियाँ और कहानियां सकारात्मक रुझान पैदा करने में सहायक होती है
- अव्धार्नानाओ को समझ कर मूर्त से अमुत की ओर ले जाना
- प्राथमिक स्तर पर बच्चो को गणनात्मक कौशल के आलावा , पैटर्न को पहचानने , अभिव्यक्त करने और समझाने पर, या समस्याओं के हल में आकलन करने और अनुमान का इस्तेमाल करने , सम्बाध पहचानने और सम्प्रेषण व तर्क की द्रष्टि से भाषागत कौशल का विकास पर जोर दिया जाना चाहिए.
- उच्च प्राथमिक स्तर पर -
- विद्यार्थी बीजगानितीय संकेतो से परिचित होते है और स्थान और आकारों की समस्याए हल करने और सामान्यीकरण में उनका उपयोग सीखते है .
- आंकड़ो का उपयोग,प्रस्तुति ,और व्याख्या.
- इस स्तर का अधिगम विद्यार्थियों की द्विआयामी व त्रिआयामी समझ तथा काल्पन कौशल को सम्रिथ्द बनाने का भी अवसर प्रदान करता है .
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