Sunday 28 August 2016

समास

सम + आस = समास = संछिप्त
1. दो या दो से अधिक पदों (शब्दों) को मिलाकर एक संछिप्त पद समास बनता है .
            माता -पिता ( माता और पिता )
            हस्तलिखित - ( हस्त ( हाथ ) से लिखित
2. समास करते समय दो या दो से अधिक पदों के मध्य का अंश हटा दिया /लुप्त कर दिया जाता है .
           लाल है जो मिर्च = लालमिर्च
           चार राहों का समूह = चौराहा
3. समास के पदों में वर्ण विकार आ सकता है
           घोड़े पर सवार = घुड़सवार
            सात सौ के समूह वाली = सतसई

1.अव्ययीभाव  समास 

1. अव्यय/उपसर्ग + संज्ञा 
     आ, अति,अनु,प्रति,यथा,यावत,वि,नि,निः, उप , सम,भर, बे, हर, ला , स. 
2. संज्ञा+ अव्यय 
     अनुसार , पूर्वक, अर्थ , उपरांत , उन्मुख , भर .
3. पुन्राव्रतिमुलक
   शब्द+ शब्द (संज्ञा +संज्ञा / विशेषण+विशेषण )         
             घर -घर = प्रत्येक घर                 
             मंद -मंद = अत्यंत मंद 
शब्द +ए + शब्द      ( ए = में/पर )   
             प्रत्येक ....................में/पर 
            कोने -कोने ...............प्रत्येक कोने में 
शब्द+ओ+शब्द 
            हाथोहाथ ..............हाथों ही हाथों में 
अन्य 
प्रति = प्रत्येक /विपरीत/ दूसरा/ बदले में 
प्रतिदिन ..............प्रत्येक दिन                                                          
प्रतिशत ..............प्रत्येक शत 
प्रत्यक्ष ..............अतिथि के सामने / समक्ष / परोक्ष                              
प्रतिध्वनी .............ध्वनी की दूसरी ध्वनी 
प्रतिबिम्ब .............बिम्ब का दूसरा बिन्म                                         
प्रत्युतर .................उत्तर के बदले में उत्तर 
प्रतिकूल ..............कुल के विपरीत 
 = तक /से लेकर /पर्यंत 
आजन्म ...................जन्म से लेकर 
आमरण ....................मरण तक 
आजीवन ................जीवन पर्यंत 
आकंठ ..............कंठ तक 
आपादमस्तक .................पाद से मस्तक तक 
यथा = अनुसार /जैसा 
यथाशक्ति ..............शक्ति के अनुसार 
यथाक्रम ...............क्रम के अनुसार 
याठेस्थ ............ईस्ट के अनुसार 
यथास्थान .............स्थान के अनुसार 
यथोचित ..............उचित के अनुसार 
यथारुचि ...........रूचि के अनुसार 
यथार्थ ..................अर्थ एक अनुसार 
अनु= प्रत्येक / पश्चात् /समीप/ अनुसार 
अनुछन ...........छन के अनुसार 
अनुदिन ...........प्रत्येक दिन 
अनुरूप ...........रूप के अनुसार 
अनुकृति ............कृति के अनुसार 
हर = प्रत्येक 
हरेक ...........प्रत्येक एक                              
हर जगह ..................प्रत्येक जगह 
हरवक्त ..........प्रत्येक वक्त                            
हरमाह ....................प्रत्येक माह 
उप =समीप /पश्चात् / अनुसार / छोटा 
उपमान ..........मान के अनुसार                    
उपवन ............छोटा वन 
उपसर्ग .............समीप सर्ग                          
उपखंड ...........छोटा खंड 
उपदेश .............देश के अनुसार                  
उपस्थिति...........समीप स्थिति 
भर = पूरा 
भरसक ..........शक्ति भर                          
भरमार ..............पूरी मार 
भरपेट .............पेट भर कर                      
भरपूर .................पूरा भर कर 
स = सहित साथ 
सकुशल .........कुशलता के साथ                
 सादर .........आदर के साथ 
सपत्निक ...........पत्नी के साथ                    
सावधान  ............अवधान (मनोयोग) 
2. संज्ञा +अव्यय 
अर्थ = के लिए 
स्वार्थ ..........स्व के लिए                            
हितार्थ .............हित के लिए 
सेवार्थ ...........सेवा के लिए                        
ज्ञानार्थ ............ज्ञान के लिए

2 . तत्पुरुष समास

इस समास में दूसरा पद प्रधान होता है .
(i)तत्पुरुष समास में दूसरा पद (पर पद)
प्रधान होता है अर्थात् विभक्ति का लिंग, वचन
दूसरे पद के अनुसार होता है।
(ii) इसका विग्रह करने पर कत्र्ता व सम्बोधन
की विभक्तियों (ने, हे, ओ,
अरे) के अतिरिक्त
किसी भी कारक की विभक्ति प्रयुक्त होती है तथा विभक्तियों
के अनुसार ही इसके उपभेद होते 
हैं।
राजकन्या  / राजपरिवार 
दो पदों के बिच का करक चिन्ह लुप्त रहता है , विग्रह करने पर पुनह रख दिया जाता है . 
करक चिन्ह - 1 कर्ता- ने , 2 कर्म - को , 3 करण- से, के द्वारा , 4 सम्प्रदान - के लिए , 5 अपादान - से ( अलग होने के अर्थ में ) , 6 सम्बन्ध - का , के , की , 7 अधिकरण - में,पर, 8 संबोधन - हे, अरे, ओ . 
* कर्म तत्पुरुष - इसमें समास पदों में /को / लुप्त रहता है . 
कर्मगत.............कर्म को गत 
जातिगत ..............जाती को गत 
अधिकार प्राप्त ............अधिकार को प्राप्त 
विदेशगमन ..............विदेश को गमन 
शांतिप्रिय.............शांति को प्राप्त 
स्थानापन्न ..........स्थान को आपन्नं 
दिनकर .................दिन को करने वाला 
सेंधमार .................सेंध को मरने वाला 
झखमार .................झक को मरने वाला 
कमरतोड़ ................कमर को तोड़ने वाला 
मुरलीधर ...................मुरली को धरने वाला 
मनोहारी ...................मन को हरने वाला 
कृष्णार्पण = कृष्ण को अर्पण
नेत्र सुखद = नेत्रों को सुखद
वन-गमन = वन को गमन
जेब कतरा = जेब को कतरने वाला
प्राप्तोदक = उदक को प्राप्त
(ख) करण तत्पुरुष (से/के द्वारा)
ईश्वर-प्रदत्त = ईश्वर से प्रदत्त
हस्त-लिखित = हस्त (हाथ) से लिखित
तुलसीकृत = तुलसी द्वारा रचित
दयार्द्र = दया से आर्द्र
रत्न जडि़त = रत्नों से जडि़त
(ग) सम्प्रदान तत्पुरुष (के लिए)
हवन-सामग्री = हवन के लिए सामग्री
विद्यालय = विद्या के लिए आलय
गुरु-दक्षिणा = गुरु के लिए दक्षिणा
बलि-पशु = बलि के लिए पशु
(घ) अपादान तत्पुरुष (से पृथक्)
ऋण-मुक्त = ऋण से मुक्त
पदच्युत = पद से च्युत
मार्ग भ्रष्ट = मार्ग से भ्रष्ट
धर्म-विमुख = धर्म से विमुख
देश-निकाला = देश से निकाला
(च) सम्बन्ध तत्पुरुष (का, के, की)
मन्त्रि-परिषद् = मन्त्रियों की परिषद्
प्रेम-सागर = प्रेम का सागर
राजमाता = राजा की माता
अमचूर =आम का चूर्ण
रामचरित = राम का चरित
(छ) अधिकरण तत्पुरुष (में, पे, पर)
वनवास = वन में वास
जीवदया = जीवों पर दया
ध्यान-मग्न = ध्यान में मग्न
घुड़सवार = घोड़े पर सवार
घृतान्न = घी में पक्का अन्न

कवि पुंगव = कवियों में श्रेष्ठ
3. द्वन्द्व समास
(i)द्वन्द्व समास में दोनों पद प्रधान होते हैं।
(ii) दोनों पद प्रायः एक दूसरे के विलोम होते हैं, सदैव नहीं।
(iii)इसका विग्रह करने पर ‘और’, अथवा ‘या’ का प्रयोग होता है।
माता-पिता = माता और पिता
दाल-रोटी = दाल और रोटी
पाप-पुण्य = पाप या पुण्य/पाप और पुण्य
अन्न-जल = अन्न और जल
जलवायु = जल और वायु
फल-फूल = फल और फूल
भला-बुरा = भला या बुरा
रुपया-पैसा = रुपया और पैसा
अपना-पराया = अपना या पराया
नील-लोहित = नीला और लोहित (लाल)
धर्माधर्म = धर्म या अधर्म
सुरासुर = सुर या असुर/सुर और असुर
शीतोष्ण = शीत या उष्ण
यशापयश = यश या अपयश
शीतातप = शीत या आतप
शस्त्रास्त्र = शस्त्र और अस्त्र
कृष्णार्जुन = कृष्ण और अर्जुन
4. बहुब्रीहि समास
(i)बहुब्रीहि समास में कोई भी पद प्रधान नहीं होता।
(ii) इसमें प्रयुक्त पदों के सामान्य अर्थ की अपेक्षा अन्य अर्थ
की प्रधानता रहती है।
(iii)इसका विग्रह करने पर ‘वाला, है, जो, जिसका, जिसकी, जिसके, वह आदि
आते हैं।
गजानन = गज का आनन है जिसका वह (गणेश)
त्रिनेत्र = तीन नेत्र हैं जिसके वह (शिव)
चतुर्भुज = चार भुजाएँ हैं जिसकी वह (विष्णु)
षडानन = षट् (छः) आनन हैं जिसके वह (कार्तिकेय)
दशानन = दश आनन हैं जिसके वह (रावण)
घनश्याम = घन जैसा श्याम है जो वह (कृष्ण)
पीताम्बर = पीत अम्बर हैं जिसके वह (विष्णु)
चन्द्रचूड़ = चन्द्र चूड़ पर है जिसके वह
गिरिधर = गिरि को धारण करने वाला है जो वह
मुरारि = मुर का अरि है जो वह
आशुतोष = आशु (शीघ्र) प्रसन्न होता है जो वह
नीललोहित = नीला है लहू जिसका वह
वज्रपाणि = वज्र है पाणि में जिसके वह
सुग्रीव = सुन्दर है ग्रीवा जिसकी वह
मधुसूदन = मधु को मारने वाला है जो वह
आजानुबाहु = जानुओं (घुटनों) तक बाहुएँ हैं जिसकी वह
नीलकण्ठ = नीला कण्ठ है जिसका वह
महादेव = देवताओं में महान् है जो वह
मयूरवाहन = मयूर है वाहन जिसका वह
कमलनयन = कमल के समान नयन हैं जिसके वह
कनकटा = कटे हुए कान है जिसके वह
जलज = जल में जन्मने वाला है जो वह (कमल)
वाल्मीकि = वल्मीक से उत्पन्न है जो वह
दिगम्बर = दिशाएँ ही हैं जिसका अम्बर ऐसा वह
कुशाग्रबुद्धि = कुश के अग्रभाग के समान बुद्धि है जिसकी
वह
मन्द बुद्धि = मन्द है बुद्धि जिसकी वह
जितेन्द्रिय = जीत ली हैं इन्द्रियाँ जिसने वह
चन्द्रमुखी = चन्द्रमा के समान मुखवाली है जो वह
अष्टाध्यायी = अष्ट अध्यायों की पुस्तक है जो वह
5. द्विगु समास
(i)द्विगु समास में प्रायः पूर्वपद संख्यावाचक होता है तो कभी-कभी
परपद भी संख्यावाचक
देखा जा सकता है।
(ii) द्विगु समास में प्रयुक्त संख्या किसी समूह का बोध कराती है
अन्य अर्थ का नहीं, जैसा
कि बहुब्रीहि समास में देखा है।
(iii)इसका विग्रह करने पर ‘समूह’ या ‘समाहार’ शब्द प्रयुक्त होता है।
दोराहा = दो राहों का समाहार
पक्षद्वय = दो पक्षों का समूह
सम्पादक द्वय = दो सम्पादकों का समूह
त्रिभुज = तीन भुजाओं का समाहार
त्रिलोक या त्रिलोकी = तीन लोकों का समाहार
त्रिरत्न = तीन रत्नों का समूह
संकलन-त्रय = तीन का समाहार
भुवन-त्रय = तीन भुवनों का समाहार
चैमासा/चतुर्मास = चार मासों का समाहार
चतुर्भुज = चार भुजाओं का समाहार (रेखीय आकृति)
चतुर्वर्ण = चार वर्णों का समाहार
पंचामृत = पाँच अमृतों का समाहार
पं चपात्र = पाँच पात्रों का समाहार
पंचवटी = पाँच वटों का समाहार
षड्भुज = षट् (छः) भुजाओं का समाहार
सप्ताह = सप्त अहों (सात दिनों) का समाहार
सतसई = सात सौ का समाहार
सप्तशती = सप्त शतकों का समाहार
सप्तर्षि = सात ऋषियों का समूह
अष्ट-सिद्धि = आठ सिद्धियों का समाहार
नवरत्न = नौ रत्नों का समूह
नवरात्र = नौ रात्रियों का समाहार
दशक = दश का समाहार
शतक = सौ का समाहार
शताब्दी = शत (सौ) अब्दों (वर्षों) का समाहार
6. कर्मधारय समास
(i)कर्मधारय समास में एक पद विशेषण होता है तो दूसरा पद विशेष्य।
(ii) इसमें कहीं कहीं उपमेय उपमान का सम्बन्ध होता है तथा विग्रह
करने पर ‘रूपी’
शब्द प्रयुक्त होता है –
पुरुषोत्तम = पुरुष जो उत्तम
नीलकमल = नीला जो कमल
महापुरुष = महान् है जो पुरुष
घन-श्याम = घन जैसा श्याम
पीताम्बर = पीत है जो अम्बर
महर्षि = महान् है जो ऋषि
नराधम = अधम है जो नर
अधमरा = आधा है जो मरा
रक्ताम्बर = रक्त के रंग का (लाल) जो अम्बर
कुमति = कुत्सित जो मति
कुपुत्र = कुत्सित जो पुत्र
दुष्कर्म = दूषित है जो कर्म
चरम-सीमा = चरम है जो सीमा
लाल-मिर्च = लाल है जो मिर्च
कृष्ण-पक्ष = कृष्ण (काला) है जो पक्ष
मन्द-बुद्धि = मन्द जो बुद्धि
शुभागमन = शुभ है जो आगमन
नीलोत्पल = नीला है जो उत्पल
मृग नयन = मृग के समान नयन
चन्द्र मुख = चन्द्र जैसा मुख
राजर्षि = जो राजा भी है और ऋषि भी
नरसिंह = जो नर भी है और सिंह भी
मुख-चन्द्र = मुख रूपी चन्द्रमा
वचनामृत = वचनरूपी अमृत
भव-सागर = भव रूपी सागर
चरण-कमल = चरण रूपी कमल
क्रोधाग्नि = क्रोध रूपी अग्नि
चरणारविन्द = चरण रूपी अरविन्द

विद्या-धन = विद्यारूपी धन

          

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