Monday 31 October 2016

शिक्षण और अधिगम की मुलभुत प्रक्रियाएं

शिक्षण और अधिगम की मुलभुत प्रक्रियाएं ,बच्चों के अधिगम की रणनीतियां ,अधिगम एक सामाजिक प्रक्रिया.
1.अनुभव ,क्रिया-प्रतिक्रिया,निर्देश आदि प्राणी के व्‍यवहार में परिवर्तन लाते रहते है .यह अधिगम का व्यापक अर्थ है ।

2.सामान्य अर्थ-व्यव्हार में परिवर्तन होना .सीखना ।

3.गिल्फोर्ड -" व्यवहार के कारण में परिवर्तन होना अधिगम है " ( अधिगम स्वय व्यव्हार में परिवर्तन का कारण है .)।

4.स्किनर -" व्यवहार के अर्जन में उन्नति की प्रक्रिया ही अधिगम है "।

5.काल्विन -"पहले से निर्मित व्यवहार में अनुभव द्वारा परिवर्तन ही अधिगम है "।

6.अधिगम की पूरक प्रक्रिया विभेदीकरण या विशिष्टीकरण भी मानी गई है .जैसे -खिलोने के सभी घटकों को अलग कर फिर से जोड़ना ।

7.अधिगम सदैव लक्ष्य-निर्दिष्ट व सप्रयोजन होता है .यदि अधिगम के लक्ष्यों को स्पस्ट और निश्चित कथन में दिया जाये तो अधिगमकर्ता के लिए अधिगम अर्थपूर्ण तथा सप्रयोजन होगा ।

8.अधिगम एक निरंतर चलने वाली प्रक्रिया है जैसे विकास ।

9.अधिगम व्यक्तिगत होता है अर्थात प्रत्येक अधिगमकर्ता अपनी गति से,रूचि,आकांक्षा ,समस्या,संवेग,शारीरिक-मानसिक स्वास्थ्य आदि के आधार पर सीखता है .इसमें अभिप्रेरनात्मक करना भी होते है ।

10.अधिगम सृजनात्मक होता है .अर्थात अधिगम ज्ञान व अनुभवों का सृजनात्मक संश्लेषण है ।

11.क्रो एव क्रो के अनुसार -"समीक्षात्मक चिंतन/क्रिटिकल थिंकिंग में जिस प्रकार निम्नलिखित मानसिक क्रियाएं होती है उसी प्रकार यह अधिगम से गहरे स्तर पर सम्बंधित है -

  1. दिशा 
  2. व्यख्या
  3. चयन
  4. अंतर्दृष्टि 
  5. सृजन
  6. समालोचना 
12.अधिगम को प्रभावित करने वाले कारक :

  • बालक के लिए कारक : - 1.सिखने की इच्छा ,2.शैक्षिक प्रष्ठभूमि ,3.शारीरिक व मानसिक स्वास्थ्य.4.परिपक्वता , 5.अभिप्रेरणा , 6.अधिगम कर्ता की अभिवृति, 7. सिखने का समय व अवधि .
  • 8.बुद्धि 
  • अधिगम प्रक्रिया के कारक :- 1. अध्यापक का विषय ज्ञान ,2.शिक्षक का व्यवहार 3.शिक्षक को मनोविज्ञान का ज्ञान ,4. शिक्षण विधि, 5.व्यक्तिगत भेदों का ज्ञान, 6.शिक्षक का व्यक्तित्व , 7.पाठ्य-सहगामी क्रियाएं ,8. अनुशासन की स्थिति.
13. अधिगम उत्तरोत्तर सामंजस्य की प्रक्रिया है .
14.वुद्वर्थ -"नविन ज्ञान और नविन प्रतिक्रियाओं को प्राप्त करने की प्रक्रिया सिखने की प्रक्रिया है ".
15.शिक्षण और अधिगम में सम्बन्ध -यह समान प्रक्रियाएं है ,शिक्षण में शिक्षक,बालक व पाठ्यक्रम है . शिक्षा में शिक्षण ,अधिगम और अनुभव है 
16. शिक्षक जिस प्रकार से पाठ्यक्रम को पढाता है वह प्रक्रिया शिक्षण है . इसमें सिखाना भी निहित होना चाहिए .अतः शिक्षण-अधिगम मिलकर ही पूर्णता होती है .
17. ---अधिगम के नियम ----पावलाव ,स्किनर आदि ने जिस प्रकार अधिगम सिद्धांतवादों का प्रतिपादन किया उसी प्रकार थार्नडायिक ने अधिगम के नियमो का प्रतिपादन किया है - 

  • तत्परता का नियम: जब तक कोई अधिगम कर्ता सिखने के लिए अपने मन से तत्पर नहीं है तब तक अधिगम कठिन है .
  • अभ्यास का नियम : क्युकी शिक्षा,शिक्षण और अधिगम का मूल उद्देश्य विद्यार्थिओं में व्यवहारगत परिवर्तन लाना है . अतः व्यवहार में निरंतर अभ्यास न होने पर उसे भूल जाते है अतः अभ्यास अधिगम में बहुत महत्वपूर्ण है .(प्रयत्न एवं भूल का सिध्धांत).
  • प्रभाव का नियम :  जिस बात की जीवन उपयोगिता जितनी अधिक होगी बालक सिखने के लिए उतना ही अधिक प्रभावित होगा . साथ ही पूर्वज्ञान के प्रभाव में भी वह नए ज्ञान का अधिगम करता है .
18.अधिगम के सिद्धांत :-
साहचर्यवादी
1.अनुकरण सिद्धांत - अनुकरण का सिद्धांत प्लेटो और अरस्तु की उपज है . इसके अनुसार अधिगम की प्रक्रिया में सुनी हुई बात की अपेक्षा देखि हुई या किसी परिस्थिति में घटित हुई बात का प्रभाव अधिक होता है . यही करना है की विद्यार्थी शिक्षक का अनुकरण (नक़ल) करते है .  
2. प्रयत्न एवं भूल का सिद्धांत - थार्नडायिक इस सिद्धांत के प्रणेता है . उनके अनुसार अधिगम , परिस्थिति और उसके परिणामों क बीच पारस्परिक संबंधो का परिणाम है . किसी कार्य को करने का प्रयत्न तो कोई भी कर सकता है किन्तु उसमे सुधर मस्तिस्क की विशेष प्रक्रिया है . मस्तिस्क विकसित होता जाता है और जीरो-इरर की स्थिति आदर्श होती है . नए प्रयोग और नेई खोज आदि के लिए इस सिद्धांत अत्यंत उपयोगी है . 

व्यव्हारवादी - 1. पावलाव का सिद्धांत - इसे पावलाव का अनुकूलित अनुक्रिया सिद्धांत /क्लासिकी अनुबंध//शाश्त्रीय अनुबंध सिद्धांत वाद भी कहते है : यह व्यव्हार वादी सिद्धांत है . इसको मानने वालों में पावलाव,स्किनर , वाटसन आदि है . पावलाव ने कुत्तों पर, स्किनर ने चूहों पर, और वाटसन ने खरगोश के बच्चो पर प्रयोग किये. इस सिद्धांत में - " स्वाभाविक उद्दीपक के साथ कृत्रिम उद्दीपक को इस प्रकार अनुबंधित किया जाता है की अनुक्रिया अंत में कृत्रिम उद्दिपक से ही अनुबंधित रह जाती है . इसलिए इसे उद्दीपन-अनुक्रिया -सिद्धांत भी कहते है . अधिगम की दृष्टि से देखें तो बालक को लोरी सुनाना ,प्रशंसा  करना आदि उद्दीपक से धीरे -धीरे जो अनुक्रिया होती है वह अंततः आदत बन जाती है . अर्थात उत्तेजक द्वारा उत्प्रेरण का इस सिद्धांत में बड़ा महत्त्व है . 
नोट - कुत्ते की लार का प्रयोग इसी सिद्धांत में पावलाव ने किया था .   

2. स्किनर का सिद्धांत - इसे क्रियाप्रसूत अनुबंधन का सिद्धांत भी कहते है . यह एक अधिगम प्रक्रिया है जिसके द्वारा अधिगम अनुक्रिया को अधिक संभाव्य और द्रुत बनाया जाता सकता है . स्किनर की मान्यता है की मानव का समग्र व्यवहार  क्रियाप्रसूत  पुनर्बलन है . जब कोई बात  किसी व्यव्हार के किसी रूप को पुनर्बलित करती है तो उस व्यव्हार की आवृति अधिक होती है . प्रबलन जीतना अधिक शक्तिशाली होगा व्यवहार की आवृति उतनी ही अधिक होगी . प्राकृतिक प्रबलन सबसे अधिक शक्तिशाली होते है . अभिवृतिया, जीवन -मूल्य आदि कृत्रिम है परन्तु स्थाई प्रबलन है . .
विशेष -
  1. सर्कस में पशु-पक्षियों के प्रशिक्षण को समझने में स्किनर का प्रयोग सफल हुआ है .
  2. स्किनर से पहले उद्दीपन-अनुक्रिया सिद्धांत पर वाटसन और थार्न डायिक ने भी प्रयोग किये थे . 
  3. थार्न डायिक ने उद्दीपक भोजन रखकर बिल्ली को संदूक का दरवाजा खोलना सिखा दिया .


गेस्टाल्टवादी - 
1. सूझ का सिद्धांत .- व्यव्हार वादी वैज्ञानिकों ने पशु-पक्षियों पर प्रयोग निष्कर्ष मानव के अधिगम से जोड़े जो अधिगमकर्तायों को स्वीकार नहीं था . इन वैज्ञानिकों का मानना है की कुछ सभ्यता तो हो सकती है लेकिन मानव का अधिगम पूरी तरह पशु-पक्षियों के अधिगम की भांति नहीं हो सकता . अधिगम सदैव प्रयोजनपूर्ण होता है . और पशु पक्षियों पर किये जाने वाले कई प्रयोग पूरी तरह कृत्रिम वातावरण पर आधारित होते है . यह सिद्धांत ज्ञान के उद्देश्पुर्ती पर बल अधिक नहीं देता है बल्कि कौशल के विकास पर अधिक बल देता है . सूझ द्वारा अधिगम सिद्धांत केलिए  कोहलर ने प्रयोग किये है . 
 विशेष- गेस्टाल्टवाद एक जर्मन शब्द है जिसका अर्थ है रूप -आकार . मनोविज्ञान की यह शाखा मानती है मनुष्य सहज परिस्थितियों में चीजों को समझते हुए उसका एक रूपाकार अपने मस्तिस्क में स्थापित कर लेता है . ...
(समाप्त)
   

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