अलाभान्वित , एवं वंचित वर्गों सहित विविध प्रष्ठ भूमियों के अधिगम कर्ताओं की पहचान
- समावेशी या समेकित शिक्षा व्यवस्था में अलाभान्वित , वंचित ,विशेष आवश्यकता वाले बच्चे , परतिभाशाली बच्चे , समस्यामूलक बच्चे और अपराधी बच्चे आदि के मानसिक स्वास्थ्य विज्ञान का अध्ययन करते हुए उन्हें मुख्य धारा की सामान्य शिक्षा व्यवस्था में जोड़ा जाता है.
- व्यक्तिगत , सामाजिक स्तर पर अनेक कारक क्रियाशील होते है, जिनके कारण बालक की विशेष आवश्यकताओ का जन्म होता है जिनकी पूर्ति हमारी व्यवस्था से होना जरुरी है.
- यद्यपि सभी को शिक्षा संविधान प्रदत्त अधिकार है परन्तु सभी बालकों को व्यव्हार में यह अवसर उपलब्ध नहीं है.
- सुविधावंचित बालक /बालिकाओं के लिए अधिक पाठशालाएं खेलना, आवासीय सुविधा, मुक्त-शिक्षण , अनोपचारिक शिक्षा केंद्र आदि के माध्यम से लाभ दिया जा सकता है.
- निर्धनता एक ऐसा मूल कारण है जो भारतीय समाज में पिछड़े व वंचित वर्ग की शिक्षा को विशेष रूप से प्रभावित करता है.
- इस प्रकार के बालक-बालिकाओं की सामाजिक और मनोवैज्ञानिक समस्या उत्पन्न हो जाती है.
- कक्षा में शिक्षक को वंचित वर्ग, अनुसूचित जाती वर्ग आदि के बालकों को महत्त्व के साथ स्वीकार करना चाहिए .
- भारत में अनुसूचित जनजाति के लोग प्रायः सुदूर और बिखरे गोवों अथवा टापरों आदि पर रहते है.ये दिन प्रतिदिन की सुविधा , रोटी-कपडा-मकान नहीं जुटा पाते ,.विद्यालयों तक ऐसे परिवार के बालक -बालिकाओ की बहुत कम संख्या पहुँचती है . पाठ्यपुस्तकों में उनकी जुडी बातें , उदाहरण भाषा आदि नहीं होती है.
- अनुसूचित जनजाति/जाति को अन्तय्ज भी कहा गया . इनको पूर्व से सामाजिक रूप से ऐसे कामो में लगाया गया जिन्हें घ्रणित या निम्न समझा जाता था. अतः ये धर्मिक स्थल , ज्ञान-स्थलों आदि से दूर होते गये . और इनकी सामाजिक गतिशीलता रुक गयी . अतः आज इनके उत्थान को "अन्त्योदय" कहते है .
- भारत में /राज्यों के कर्तव्यों के तहत कई योजनाये इनके शैक्षिक विकास के लिए चलाई गई जैसे -निशुल्क शिक्षा ,किताबे देना , छात्रावास ,छात्रवृति आदि .
- इस प्रकार शिक्षक को अपनी कक्षा में अलाभान्वित ,एवं वंचित वर्गों सहित विविध प्रष्ठ भूमियों के अधिगाम्कर्ताओ की पहचान अवश्य करनी चाहिए.
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